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रास्ट्रपति चुनाव के बाद कभी भी हो सकता है उप्र भाजपा अध्यक्ष का एलान ,पूर्व मंत्री रामकुमार वर्मा का नाम उछाल पर


अभिषेक चौधरी

लखनऊ . सबका साथ सबका विकास का नारा देने के बाद भी भाजपा जातिवाद का जबरदस्त कार्ड खेल रही है ,जातिवाद की घोर विरोधी भाजपा में अंदरखाने निष्क्रिय पदों पर दलित –पिछड़े वर्ग को बैठा कर भाजपा इन वर्गों को अपने ओर आकर्षित करने में कोई कोर – कसर नहीं छोड़ना चाहती .उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में भाजपा को कल्पना से अधिक सीटें उत्तर प्रदेश की जनता ने दे दिया .भाजपा की इस प्रचंड जीत में प्रदेश के पिछड़ो और दलितों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है .




सवर्णवादी विचार धारा की पार्टी के रूप में विख्यात भाजपा के नारे “सबका साथ –सबका विकास “ को ही ध्यान में रख दलित और पिछड़े वर्ग ने अपना भरपूर समर्थन भाजपा के पक्ष में खुल कर दिया किन्तु अनेक प्रदेश में जीत हासिल कर चुकी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वरा सत्ता की कुंजी सवर्णों को सौपने के बाद से ही दलित और पिछड़े वर्ग का विस्वास भाजपा से डगमगा रहा है ,तो रही कही असर उत्तर प्रदेश में दलितों और पिछड़ो पर बढ़ रहे अत्याचार ने पूरा कर दिया जिस कारण प्रदेश का दलित –पिछड़े वर्ग के मतदाता अपने को ठगा महसूस कर रहे है .

भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने अभी से ही 2019 के लोकसभा चुनाव हेतु कमर कसना शुरू कर दिया है .दलितों पर डोरा बरकार रखने की मंसा के तहत ही देश के रास्ट्रपति चुनाव में भाजपा ने दलित वर्ग को प्रतिनिधित्व देते हुए रामनाथ कोविंद के नाम का ढिढोरा पीट कर देश के रास्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया .यह सनद है कि राष्ट्रपति केंद्रीय मंत्रिमंडल के अधीन है.राष्ट्रपति मात्र विधेयकों पर अनुमति देने का कार्य करता है.वह अपनी इच्छा से कुछ नही कर सकता.ज्ञानी जैल सिंह जैसा व्यक्ति ही सरकार के कुछ विधेयकों को जेब में रखकर सबक सिखा सकता है.लेकिन एक संघी व्यक्ति जो पहले से ही एक विचारधारा का बंधक है से तटस्थता की उम्मीद नहीं की जा सकती है.राष्ट्रपति तटस्थ रहकर अपने पद की गरिमा के अनुरूप मूंकदर्शक बना केंद्र सरकार की मनमानी में शरीक होता है.ऐसा पद किसी दलित को भाजपा ने दे भी दिया तो क्या मतलब निकलेगा ?



इसके विपरीत मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री का पद डिसीजन मेकिंग का केंद्र और संचालक होता है.इस पर पदासीन व्यक्ति सही मायने में समाज और देश को नई दिशा दे सकता है.यूपी में प्रचण्ड बहुमत प्राप्त भाजपा यदि वास्तव में दलित हितैषी होती तो वह दलितों को वास्तविक शक्ति वाला पद देती.इसके अलावा अन्य प्रदेशों में भी भाजपा की बहुमत की सरकारें बनी लेकिन किसी में भी भाजपा ने दलित या पिछड़े को मुख्यमंत्री नही बनाया.ये कैसा भाजपा का दलित प्रेम ? बल्कि संबैधानिक हक़ दलितों से शातिराना तरीके से छीने जा रहे हैं.

फिरहाल रास्ट्रपति चुनाव के बाद देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश पर भाजपा अपना ध्यान केन्द्रित कर अब पिछड़े वर्ग को नई जिम्मेदारी देने का मन बना रही है .उत्तर प्रदेश में भाजपा अध्यक्ष केशव मौर्य के उपमुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद से ही भाजपा ने तेजतर्रार प्रदेश अध्यक्ष की तलाश तेज कर दी थी . कुछ समय पूर्व पार्टी उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष के लिए कोई दलित चेहरा तलाश रही थी जिस में रामशंकर कठेरिया, अशोक कटारिया और विद्यासागर सोनकर का नाम तेजी से उभरा था तो पिछड़े वर्ग से राम मंदिर आंदोलन के नेता विनय कटियार भी दौड़ में थे .




भाजपा द्वरा रास्ट्रपति पद दलित वर्ग को सौपे जाने के बाद अब उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी किसी पिछड़े वर्ग के जनाधार वाले नेता को सौपे जाने की सुगबुगाहट तेज हो गई है .भाजपा के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक नया प्रदेश अध्यक्ष मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पसंद का हो सकता है,जिससे सरकार और पार्टी में बेहतर तालमेल बना रहे .

उत्तर प्रदेश में भाजपा की सत्ता के बाद से ही दलित व पिछड़े वर्ग के मजबूत जनाधार वाला कुर्मी समाज अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है ,इन दो वर्गों पर इस सरकार में अत्याचार भी बढ़ा है ,दलित व पिछड़ा वर्ग का यह तबका योगी सरकार के विरुद्ध आन्दोलन की रूपरेखा भी बना रहा है किन्तु प्रदेश की स्थिति पर नजर रख रहा भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इन वर्गों के विरोध को शांत करने के अपने मंसूबे पर काम कर रहा है ,रास्ट्रपति चुनाव में दलित वर्ग के नेता को प्रत्याशी बनाना दलितों के विरोध की ही परणीती है ,भाजपा अपने संघी मानसिकता के दलित नेता रामनाथ कोविंद को रास्ट्रपति बनाकर दलित वोट बैंक को खुश करने में सफलता की ओर अग्रसर है .


वही पिछड़े वर्ग के मजबूत जनाधार वाला कुर्मी समाज का भाजपा से मोह भंग हो रहा है ,कुर्मी समाज भाजपा का परम्परागत वोट बैंक रहा है किन्तु योगी सरकार के सत्ता सँभालते ही प्रदेश में इस समाज का दलितों की भांति उत्पीड़न बढ़ा है ,कइयो की दर्दनाक हत्याओ ने सरकार और भाजपा के विरुद्ध जनाक्रोश को बढ़ाने का काम किया है,जिस कारण यह समाज भाजपा के विरुद्ध लामबंद हो रहा है .
सूत्र बताते है की कुर्मी समाज का भाजपा के प्रति मोहभंग और आक्रोश की चिंगारी की ख़ुफ़िया जानकारी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को है .दलितों की भांति कुर्मी समाज को साधने के उदेश्य से भाजपा उत्तर प्रदेश के पार्टी अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी कुर्मी समाज के किसी कद्दावर नेता को सौपने का मन बना रही है .



सूत्र बताते है की भाजपा नेतृत्व पूर्व मंत्री व विधायक राम कुमार वर्मा ,पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विनय कटियार , विधायक आर के सिंह पटेल और सांसद पंकज चौधरी के नामो पर विचार कर रही है.पूर्व मंत्री राम कुमार वर्मा पुराने संघी है ,जिनकी प्रदेश में समाज के बीच अपनी साख है ,जिन्हें संघ का समर्थन प्राप्त है वही विनय कटियार केन्द्र व राज्य सरकार से किनारे किए गए है किन्तु इनकी हिंदुत्व वादी छवि छिपी नहीं है .

ऐसे में खबर आ रही है कि पार्टी रास्ट्रपति चुनाव के बाद जल्द ही उत्तर प्रदेश में नए प्रदेश अध्यक्ष का ऐलान कर सकती है.

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