जातिवादियों द्वारा छद्म तरीके से वंचित वर्ग की बहुसंख्यक आबादी को पढ़ने लिखने से दूर रखा गया ताकि उनको वर्ण व्यवस्था के दकियानूसी फंदे में फंसाकर उनके पुश्तैनी काम में उलझाए रखा जाए।
कुर्मी से खेती, नाई से बाल काटना, तेली को तेल निकालना, अहीर को दुग्ध व्यवसाय, गड़रिया को पशुपालन और काछी को सब्जी उगाने के काम में लगाकर उनको शिक्षा से वंचित रखा गया और खुद क्रूर जातिवादी लोग बुद्धिजीवी होने का राग अलापते रहे।
इसी कारण पिछड़ेपन की मौजूदा परिभाषा के अनुसार जो समाज जितना अधिक लेखन, साहित्य, बौद्धिक कार्यों में पीछे है वही पिछड़ा है। 65% जनसंख्या (लगभग 85करोड़) पिछड़ों में प्रतिशत के हिसाब से सबसे कम लेखक, कवि, पत्रकार, रचनाकार हैं।
अब जब देश की बहुसंख्यक आबादी जागरूक हो रही है तो उसकी युवा पीढ़ी भी वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार, अधिवक्ता, कवि, लेखकों मे अपना नाम शुमार करना चाहते हैं। ऐसे ही प्रतिभाओं को एक मंच पर लाने के लिए ही पिछड़े वर्ग का तीसरा बौद्धिक सम्मेलन 18 मार्च दिन रविवार को 11 बजे से एस आर एस इण्टरनैशनल स्कूल, 16 बसंत विहार पिकनिक स्पॉट रोड, इंदिरानगर लखनऊ में हो रहा है।
कार्यक्रम के आयोजक वरिष्ठ साहित्यकार राजकुमार सचान होरी कहते हैं कि देश में लगभग 60% से अधिक ही पिछड़ा वर्ग है। इस पिछड़े वर्ग की विभिन्न जातियों में लेखन से जुड़े बौद्धिक लोग जैसे पत्रकार, साहित्यकार, प्रोफेसर, कवि, इतिहासकार एवं अन्य बौद्धिक श्रेणी के कलाकार नाम मात्र हैं।
प्रमुख मुद्दे-
मिशन है बौद्धिक क्रांति। सकल विश्व का इतिहास गवाह है कि सदैव“बौद्धिक क्रांति के रास्ते ही सामाजिक, राजनैतिक क्रांति होती है “
( 1 ) जनपद स्तर पर समाचार पत्रों का प्रकाशन
(2) पुस्तकों का अधिकाधिक प्रकाशन
(3) काव्य पाठ
राजकुमार सचान होरी का कहना है कि जो समाज अपने बौद्धिक वर्ग का जितना लालन, पालन और पोषण करता है वह स्थाई रूप से अग्रणी होता है और सामाजिक, राजनैतिक क्रांति का रास्ता लेखन से होकर ही गुजरता है। बैठक में समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, पुस्तकों के प्रकाशन की समीक्षा भी जायेगी।