लखनऊ : अब यह मानने में कोई हर्ज नहीं कि रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति को बनाकर भाजपा ने वास्तव में दलितों का भला कर दिया है। यूपी भाजपा के 37 साल के इतिहास में एक भी दलित भाजपाई प्रदेश अध्यक्ष लायक नहीं समझा गया। प्रदेश सरकार में सवर्णों और पिछड़ों को प्रमुखता मिलने के बाद दलित नेताओं में उम्मीद जगी थी कि इस बार उनकी लॉटरी लग सकती है, उनके हिस्से में प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी आ सकती है, लेकिन यूपी भाजपा दलितों के लिए एक बार फिर अछूत ही रह गई।
दरअसल, डा. महेंद्र नाथ पांडेय के रूप में एक बार फिर ब्राह्मण प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भाजपा ने बता दिया है कि वह वोट बैंक के रूप में दलितों के इस्तेमाल की रणनीति तो बनाती रहेगी, और राष्ट्रीय अध्यक्ष पैसे वाले दलितों के घर जमीन पर बैठकर खाना खाते रहेंगे, लेकिन जब दलितों को उनका हक देने की बारी आएगी रामनाथ कोविंद जैसों को राष्ट्रपति बनाकर उनका भला कर दिया जाएगा। रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति बनने के बाद वैसे ही दलितों का उद्धार हो चुका है, अब भाजपा की सक्रिय राजनीति में दलितों को ज्यादा देने की दरकार नहीं है।
भाजपा को ब्राह्मण-बनियों की पार्टी ऐसे ही नहीं कहा जाता है। अगर देश-प्रदेश के अध्यक्षों की लिस्ट उठाकर देखा जाए तो यह साफ हो जाता है कि भाजपा में दलितों के लिए अध्यक्ष जैसे पद नहीं हैं। उत्तर प्रदेश में आज तक भाजपा को एक भी ऐसा दलित नेता नहीं मिला, जिसे वह पार्टी के अध्यक्ष पद पर बैठाने लायक समझती हो। यह दूसरी बात है कि भाजपा को वोट तो दलितों का भी चाहिए, पर उनका हक देकर नहीं, उनके घर खाना खाकर। किसी दलित कार्यकर्ता के घर जाकर खाना खाना क्या कम बड़ा काम है?
भाजपा के पहले अध्यक्ष माधव प्रसाद त्रिपाठी से लगायत डा. महेंद्र नाथ पांडेय तक एक भी दलित नेता भाजपा यूपी का अध्यक्ष बनने लायक मिला। माधव प्रसाद त्रिपाठी, केसरीनाथ त्रिपाठी, कलराज मिश्र, रमापति राम त्रिपाठी, डा. लक्ष्मीकांत बाजपेयी, डा. महेंद्र नाथ पांडेय, राजनाथ सिंह, सूर्य प्रताप शाही, कल्याण सिंह, राजेंद्र गुप्ता, विनय कटियार, ओम प्रकाश सिंह, केशव प्रसाद मौर्य तक खोजे एक भी दलित नहीं मिलेगा। दलित को यूपी भाजपा का अध्यक्ष बनने के लिए शायद और इंतजार करना पड़ेगा।
-अनिल सिंह(लेखक बरिष्ठ पत्रकार व प्रहार लाईव के संपादक है )
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