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सम्पूर्ण क्रांति के जनक जयप्रकाश नारायण की जयंती आज

देश में आजादी की लड़ाई से लेकर वर्ष 1977 तक तमाम आंदोलनों की मशाल थामने वाले जेपी यानी जयप्रकाश नारायण का नाम देश के ऐसे शख्स के रूप में उभरता है जिन्होंने अपने विचारों, दर्शन तथा व्यक्तित्व से देश की दिशा तय की थी। उनका नाम लेते ही एक साथ उनके बारे में लोगों के मन में कई छवियां उभरती हैं। लोकनायक के शब्द को असलियत में चरितार्थ करने वाले जयप्रकाश नारायण अत्यंत समर्पित जननायक और मानवतावादी चिंतक तो थे ही इसके साथ-साथ उनकी छवि अत्यंत शालीन और मर्यादित सार्वजनिक जीवन जीने वाले व्यक्ति की भी है। उनका समाजवाद का नारा आज भी हर तरफ गूंज रहा है। आज उनके पुण्यतिथी पर हम प्रकाश डाल रहे हैं उनके जीवन सफर पर…

जयप्रकाश नारायण भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे। उन्हें 1970 में इंदिरा गांधी के विरुद्ध विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है। इन्दिरा गांधी को पदच्युत करने के लिये उन्होने ‘सम्पूर्ण क्रांति’ नामक आन्दोलन चलाया। वे समाज-सेवक थे, जिन्हें ‘लोकनायक’ के नाम से भी जाना जाता है। 1999 में उन्हें मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मनित किया गया। इसके अतिरिक्त उन्हें समाजसेवा के लिये १९६५ में मैगससे पुरस्कार भी प्रदान किया गया था। पटना के हवाई अड्डे का नाम उनके नाम पर रखा गया है। दिल्ली सरकार का सबसे बड़ा अस्पताल ‘लोक नायक जयप्रकाश अस्पताल’ भी उनके नाम पर है।

आरंभिक जीवन:

जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के सारण जिले के सिताबदियारा गाँव में हुआ। उनके पिता का नाम हर्सुल दयाल श्रीवास्तव और माता का नाम फूल रानी देवी था। वो अपनी माता-पिता की चौथी संतान थे। जब जयप्रकाश 9 साल के थे तब वो अपना गाँव छोड़कर कॉलेजिएट स्कूल में दाखिला लेने के लिए पटना चले गए। स्कूल में उन्हें सरस्वती, प्रभा और प्रताप जैसी पत्रिकाओं को पढने का मौका मिला। उन्होंने भारत-भारती, मैथिलीशरण गुप्त और भारतेंदु हरिश्चंद्र के कविताओं को भी पढ़ा। इसके अलावा उन्हें ‘भगवत गीता’ पढने का भी अवसर मिला।

1920 में जब जयप्रकाश 18 वर्ष के थे तब उनका विवाह प्रभावती देवी से हुआ। विवाह के उपरान्त जयप्रकाश अपनी पढाई में व्यस्त थे इसलिए प्रभावती को अपने साथ नहीं रख सकते थे इसलिए प्रभावती विवाह के उपरांत कस्तूरबा गांधी के साथ गांधी आश्रम मे रहीं। मौलाना अबुल कलाम आजाद के भाषण से प्रभावित होकर उन्होंने पटना कॉलेज छोड़कर ‘बिहार विद्यापीठ’ में दाखिला ले लिया। बिहार विद्यापीठ में पढाई के पश्चात सन 1922 में जयप्रकाश आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले गए।

उच्च शिक्षा के लिये अमेरिका गये हुये जयप्रकाश नारायण साम्यवादी विचारो की तरफ झुके. भारत वापस आने के बाद उन्होंने ‘व्हाय सोशॅलिझम’ ये किताब लिखी. इस समय में कॉग्रेस पक्ष के समाजवादी विचारो के नेतओको एकत्रित करके उन्होंने कॉग्रेस पक्ष के बाहर जाकर 1948 में अलग से समाजवादी पक्ष स्थापित किया. 1953 में जयप्रकाश इन्होंने रेल और टपाल के कर्मचारीओं की हड़ताल का नेतृत्व किया. उसके बाद वो समाजवादी पक्ष के सक्रीय राजकारण से बाहर निकल कर आचार्य विनोबा भावे इनके ‘भूदान आंदोलन’ में शामिल हुये. इस आंदोलन का वैचारिक आधार रहने वाले ‘सर्वोदयवाद’ का उन्होंने पुरस्कार किया.


उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हथियारों के उपयोग को सही समझा। उन्होंने नेपाल जा कर आज़ाद दस्ते का गठन किया और उसे प्रशिक्षण दिया। उन्हें एक बार फिर पंजाब में चलती ट्रेन में सितंबर 1943 मे गिरफ्तार कर लिया गया। 16 महीने बाद जनवरी 1945 में उन्हें आगरा जेल मे स्थांतरित कर दिया गया। इसके उपरांत गांधी जी ने यह साफ कर दिया था कि डॉ॰ लोहिया और जेपी की रिहाई के बिना अंग्रेज सरकार से कोई समझौता नामुमकिन है। दोनो को अप्रेल 1946 को आजाद कर दिया गया। १९५८ में इजराइल के प्रधानमन्त्री डेविड बेन गुरिओन के साथ तेल अवीब में जयप्रकाश जी 1948 मे उन्होंने कांग्रेस के समाजवादी दल का नेतृत्व किया और बाद में गांधीवादी दल के साथ मिल कर समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की। 19 अप्रेल, 1954 में गया, बिहार मे उन्होंने विनोबा भावे के सर्वोदय आंदोलन के लिए जीवन समर्पित करने की घोषणा की। 1957 में उन्होंने लोकनीति के पक्ष मे राजनीति छोड़ने का निर्णय लिया।

 जेपी ने पांच जून, 1975 को पटना के गांधी मैदान में विशाल जनसमूह को संबोधित किया. यहीं उन्हें ‘लोकनायक‘ की उपाधि दी गई. इसके कुछ दिनों बाद ही दिल्ली के रामलीला मैदान में उनका ऐतिहासिक भाषण हुआ. उनके इस भाषण के कुछ ही समय बाद इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया. दो साल बाद लोकनायक के संपूर्ण क्रांति आंदोलन के चलते देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी.

उन्होंने अंग्रेजी शासन के खिलाफ अहिंसक संघर्ष की पुरजोर पैरवी की और उनके क्रान्तिकारी नेतृत्व ने 1970 के दशक में भारतीय राजनीतिक की दशा-दिशा ही बदल दी। वरिष्ठ पत्रकार और उनके साथ लंबे समय तक जुड़े रहे रामबहादुर राय कहते हैं कि अमेरिका से पढ़ाई करने के बाद जेपी 1929 में स्वदेश लौटे। उस वक्त वह घोर मार्क्‍सवादी  हुआ करते थे। वह सशस्त्र क्रांति के जरिए अंग्रेजी सत्ता को भारत से बेदखल करना चाहते थे हालांकि बाद में बापू और नेहरू से मिलने एवं आजादी की लड़ाई में भाग लेने पर उनके इस दृष्टिकोण में बदलाव आया।

अमूमन गांधीवादी विचारधारा पर चलने वाले जयप्रकाश नारायण सत्याग्रह के द्वारा सत्ता से अपनी बातें मनवाने के हिमायती थे. उनका कहना था कि सत्ता पर जनता का हक है ना कि जनता पर सत्ता का. स्वभाव से बेहद शांत दिखने वाले जयप्रकाश नारायण का हृदय बेहद कठोर और उनकी सोच कभी ना हिलने वाली थी. जय प्रकाश नारायण एक लेखक भी थे। उनके निबंध ‘बिहार में हिंदी की वर्त्तमान स्थिति’ ने सर्वश्रेष्ठ निबंध का पुरस्कार जीता। लोकनायक जय प्रकाश नारायण को मरणोपरांत वर्ष 1999 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। उन्हें 1965 में ‘रमन मैग्सेसे पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया था।


कुछ दिन बाद 1943 में जयप्रकाश और राममनोहर लोहिया दोनों लोग गिरफ़्तार कर लिये गये। किन्तु येनकेन प्रकारेण वे लोग फ़रार हो गये। भविष्य में जयप्रकाश जी रावलपिंडी पहुँचे और वहाँ पर जयप्रकाश जी ने अपना नाम बदल लिया। किन्तु ट्रेन में किसी दिन सफ़र करते हुए जयप्रकाश जी को अंग्रेज़ पुलिस अफ़सर ने दो भारतीय सैनिकों की सहायता से गिरफ़्तार कर लिया। जयप्रकाश को लाहौर की काल कोठरी में रखा गया तथा इनकी कुर्सी पर बांधकर पिटाई की गई। भविष्य में इन्हें वहाँ से आगरा सेन्ट्रल जेल भेज दिया गया।

जयप्रकाश जी 1974 में भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में एक कटु आलोचक के रूप में प्रभावी ढंग से उभरे। जयप्रकाश जी की निगाह में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार भ्रष्ट व अलोकतांत्रिक होती जा रही थी। 1975 में निचली अदालत में गांधी पर चुनावों में भ्रष्टाचार का आरोप साबित हो गया और जयप्रकाश ने उनके इस्तीफ़े की माँग की। इसके बदले में इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी और नारायण तथा अन्य विपक्षी नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया। पाँच महीने बाद जयप्रकाश जी गिरफ़्तार किए गए। भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जेपी आंदोलन व्यापक हो गया और इसमें जनसंघ, समाजवादी, कांग्रेस (ओ) तथा भारतीय लोकदल जैसी कई पार्टियाँ कांग्रेस सरकार को गिराने एवं नागरिक स्वतंत्रताओं की बहाली के लिए एकत्र हो गईं। इस प्रकार जयप्रकाश ने ग़ैर साम्यवादी विपक्षी पार्टियों को एकजुट करके जनता पार्टी का निर्माण किया। जिसने भारत के 1977 के आम चुनाव में भारी सफलता प्राप्त करके आज़ादी के बाद की पहली ग़ैर कांग्रेसी सरकार बनाई। जयप्रकाश ने स्वयं राजनीतिक पद से दूर रहकर मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री मनोनीत किया। 1939 की second world war के दौरान जय प्रकाश नारायण ने देश में अंग्रेजी शासन के खिलाफ़ आन्दोलन का नेतृत्व किया | इन्होने गांधीजी एवम सुभाष चंद्र बोस को एक साथ करने का भी प्रयास किया |1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के समय यह जेल से भाग निकले|

जय प्रकाश नारायण गांधीजी से पभावित थे लेकिन इन्हें सुभाष चंद्र बोस की लड़ाई ने भी प्रभावित किया था इसलिए हथियारों का उपयोग उन्होंने जरुरी समझा| अत : नेपाल में आझाद दस्ते का गठन किया परन्तु फिर 1943 में गिरफ्तार कर लिए गये| समझोते के वक्त गांधीजी ने अंग्रेजी शासन को बाध्य किया कि डॉ. लोहीया और जय प्रकाश नारायण के बिना कोई बात नहीं की जाएगी इसके बाद 1946 में इन्हें रिहाई मिली |

भारत की राजनीति को एक नई दिशा देने वाले जेपी आंदोलन की चर्चा अक्सर होती रहती है। आजादी के बाद जयप्रकाश नारायण को सरकार में शामिल होने कहा गया था। ऐसा कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उन्हेंं गृह मंत्री का पद लेने के लिए कहा था। उन्होंने इनकार कर दिया। जयप्रकाश नारायण को आजादी के बाद जनआंदोलन का जनक माना जाता है। 1973 में देश में महंगाई और भ्रष्टाचार का दंश झेल रहा था। इससे चिंतित हो उन्होंने एक बार फिर संपूर्ण क्रांति का नारा दिया। इस बार उनके निशाने पर अपनी ही सरकार थी। सरकार के कामकाज और सरकारी गतिविधियां निरंकुश हो गई थीं। गुजरात में सरकार के विरोध का पहला बिगुल बजा। बिहार में भी बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर ने छात्रों के संघर्ष को दबाने के लिए गोलियां तक चलवा दी थी। तीन हफ्ते तक हिंसा होती रही। सेना और अर्द्धसैनिक बलों को बिहार में मोर्चा संभालना पड़ा था। बताया जाता है कि जैसे-जैसे देश में जेपी का आंदोलन बढ़ रहा था, वैसे-वैसे इंदिरा गांधी के मन में एक अजीब-सा भय पैदा हो गया था। देश के हालत जिस तरह के हो गए थे उससे उन्हें लगने लगा था कि विदेशी ताकत की मदद से देश में आंदोलन चलाए जा रहे हैं और उनकी सरकार का तख्ता पलट कर दिया जाएगा।

म्रुत्यु:

आन्दोलन के दौरान ही उनका स्वास्थ्य बिगड़ना शुरू हो गया था। आपातकाल में जेल में बंद रहने के दौरान उनकी तबियत अचानक 24 अक्टूबर 1976 को ख़राब हो गयी और 12 नवम्बर 1976 को उन्हें रिहा कर दिया गया। मुंबई के जसलोक अस्पताल में जांच के बाद पता चला की उनकी किडनी ख़राब हो गयी थी जिसके बाद वो डायलिसिस पर ही रहे। जयप्रकाश नारायण का निधन 8 अक्टूबर, 1979 को पटना में मधुमेह और ह्रदय रोग के कारण हो गया।

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