लखनऊ। कैराना लोकसभा सीट पर उप चुनाव 28 मई को होंगे। चुनाव आयोग ने इसका एलान कर दिया है। इसके साथ ही राजनीतिक दलों में प्रत्याशी उतारने और चुनावी गठबंधन की हलचल तेज हो चली है। सूत्रों के मुताबिक चौधरी अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) यूपी में बीजेपी के खिलाफ एक महागठबंधन चाहती है लेकिन इस महागठबंधन में शामिल होने के लिए पार्टी ने एक शर्त भी रखी है। रालोद की शर्त है कि कैराना लोकसभा सीट पर होने वाले उप चुनाव में अजित सिंह के बेटे जयंत सिंह को उम्मीदवार बनाया जाय। अगर जयंत सिंह को उम्मीदवार नहीं बनाया गया तो रालोद कांग्रेस के साथ मिलकर कैराना उप चुनाव लड़ेगी। हालांकि, इस बात की संभावना बहुत कम है कि सपा-बसपा गठबंधन रालोद की शर्त मानेगी।
इधर, सपा-बसपा गठबंधन में बसपा उप चुनाव लड़ने को इच्छुक नहीं है। बसपा पहले ही साफ कर चुकी है कि वो उप चुनाव नहीं लड़ती है। यानी बसपा गोरखपुर और फूलपुर की ही तरह यहां भी सपा उम्मीदवार का समर्थन करेगी। लिहाजा, सपा अब जिताऊ उम्मीदवारों को तलाशने में जुट गई है। पार्टी चाहती है कि कैराना सीट पर भी उप चुनाव में जीत दर्ज कर बीजेपी को न केवल झटका दिया जाय बल्कि सपा-बसपा के मजबूत गठबंधन का संदेश भी देश भर में जाय ताकि अन्य राज्यों में भी समान विचारधारा वाले दल गठबंधन कर 2019 के आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हराने की रणनीति बना सकें।
सनद रहे बीजेपी के कद्दावर नेता हुकुम सिंह के निधन की वजह से यह सीट खाली हुई है। बीजेपी की तरफ से उनकी बेटी मृगांका सिंह को टिकट दिया जाना लगभग तय माना जा रहा है। कैराना मुस्लिम बहुल इलाका है। इस संसदीय क्षेत्र में कुल पांच विधान सभा सीटें आती हैं। इनमें मुस्लिमों की आबादी 25 से 40 फीसदी बताई जाती है। अगर सपा-बसपा ने अपने उम्मीदवार उतारे और रालोद-कांग्रेस गठबंधन की तरफ से जयंत सिंह ने चुनाव लड़ा तो मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है। राजनीति के जानकार कहते हैं कि जाट, गुर्जर, दलित, पिछड़े और मुस्लिम वोटरों का ध्रुवीकरण इस चुनाव में अहम रोल निभा सकता है। इस इलाके में जाटों पर रालोद का अच्छा प्रभाव माना जाता है। वहीं सपा-बसपा के गठबंधन को मुस्लिम वोटर्स एकमत होकर मतदान कर सकते हैं।