आपकी अदालत में यहाँ जो चित्र छापा गया है वह एक वर्दी अफसर का है, जो अम्बेडकरनगर जिला पुलिस महकमें के पुलिस कार्यालय में पी.आर.ओ. सेल प्रभारी हैं। इनका नाम श्री बृजेश मिश्रा है। ये पुलिस उपनिरीक्षक पद पर हैं। तेज-तर्रार एवं आई.टी. के विशेषज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। जिले स्तर पर आई.टी. के क्षेत्र में इनके द्वारा किया जाने वाला प्रयोग ठीक वैसा ही है जैसा कि उत्तर प्रदेश पुलिस मुख्यालय पर एक आई.जी. स्तर के वरिष्ठ आई.पी.एस. का है।
बृजेश मिश्र पद से दारोगा हैं तो जाहिर सी बात है कि उनका भी रवैय्या किसी अनजान के लिए पुलिसिया ही होगा। यही नहीं जो मीडियाकर्मी/पत्रकार उनके करीब नहीं होगा तो वह भी उनके पुलिसिया रौब का शिकार होगा। ठीक ऐसा ही वाकया रेनबोन्यूज वेब पोर्टल की सम्पादक के साथ पेश आया, जिसका जिक्र सम्पादक द्वारा स्वयं किया जा रहा है। पढ़ें और मनन करें, जो समझें अपने विचार अवश्य दें।
पुलिस आम-खास की मित्र होती है- कम से कम इसे मैं नहीं मान सकती। वर्दीधारी अपना स्वयं का मित्र नहीं होता तब किसी अन्य का कैसे सम्भव है? पुलिस मुकदमा कायम करके जेल रवाना करने में रूचि तभी लेती है जब उसका अपना स्वार्थ ऐसे कार्य में निहित होता है। अंग्रेजों ने 1861 में पुलिस संगठन को भारतीयों/हिन्दुस्तानियों पर दमन करने के लिए बनाया था। तब की पुलिस और स्वतंत्र देश की वर्तमान पुलिस में कोई खास तब्दीली नहीं देखी जा सकती है।
पुलिस पर जितना कुछ लिखा जाए वह कम ही होगा? मुझसे एक भूल हो गई थी- वह यह कि अपने जिले की पुलिस के सम्पर्क क्रमाँकों को एकत्र कर एक व्हाट्सएप्प ग्रुप बनाया था- ना जानकारी में ग्रुप के “लोगो” में पुलिस डिपार्टमेन्ट का मोनोग्राम अपलोड कर दिया था। बस इतना अपराध हुआ था। इस अपराध पर पी.आर.ओ. सेल प्रभारी बृजेश मिश्रा जी ने फोन करके कहा कि जितनी जल्दी हो सके पुलिस का मोनोग्राम हटा दो ऐसा एस.पी. का हुक्म है, यदि नहीं हटाया तो मुकदमा कायम करके जेल भेजी जावोगी।
उनकी बात सुनकर मैं डर गई थी और आश्चर्य भी हुआ कि बृजेश मिश्र ने यह भी ख्याल नहीं रखा कि वह एक महिला पत्रकार से बात कर रहे हैं। यहाँ बताना जरूरी समझती हूँ कि प्रेस/मीडियाकर्मियों की भीड़ में अम्बेडकरनगर जनपद में मैं एक मात्र सक्रिय महिला पत्रकार हूँ। खैर वर्दी अफसर मिश्रा जी की धमकी से डरकर मैंने तुरन्त ही मोनोग्राम को कौन कहे समस्त पुलिसजनों सहित उक्त ग्रुप को ही रिमूव कर दिया। बड़ा अजीब लगा था, बृजेश मिश्रा जी इस बात को मुझसे सहज/सरल तरीके से भी कह सकते थे लेकिन इसमें मिश्रा जी की कोई गलती नहीं, वह तो वर्दी अफसर हैं, गलती तो मेरी थी जो पुलिस का मोनोग्राम लगा कर ग्रुप बनाया था। सोचने लगी मिश्रा जी मेरी इस भूल को जघन्य अपराध मान बैठे थे तभीं तो मुझे समझाने के बजाए धमकी दे डाला।
यह वही पुलिस महकमा है जो मुकदमा कायम करने में अपनी रूचि तभी दिखाता है जब उसके ओहदेदारों का लाभ हो। यहाँ मोनोग्राम चूँकि पुलिस का लगा था इसलिए किसी एक का ही नहीं बल्कि पूरे डिपार्टमेन्ट का हित निहित हो गया था। एस.पी. (निवर्तमान/स्थानान्तरित आई.पी.एस. पीयूष श्रीवास्तव) साहेब (पुलिस के साहेब) होते तो यह मलाल उन तक जरूर पहुँचाती।
बृजेश मिश्रा (दारोगा जी) अम्बेडकरनगर जिले के और प्रदेश स्तर पर एक वरिष्ठ आई.पी.एस. (आई.जी. स्तर के) ही वेब/इन्टरनेट की दुनिया के जानकार वर्दी अफसरों में गिने जाते हैं।
मुझ जैसे मीडिया परसन इन पुलिस अधिकारियों के आगे एक दम से बौने हैं। पहले पी.आर.ओ. सेल ग्रुप बना था जो ‘वेबकास्ट’ के लिए था और है भी परन्तु मिश्रा जी ने एक अम्बेडकरनगर मीडिया सेल नामक (व्हाट्सएप्प) ग्रुप बनाया है जिसमें वह स्वयं, एस.पी. और दो अन्य वर्दीधारी ग्रुप एडमिन हैं। उस ग्रुप में चैटिंग करने वालों की पोस्ट्स देखकर बड़ा अजीब लगता है। जो इस ग्रुप में होना चाहिए वह नहीं दिखता और जो नहीं होना चाहिए वही रहता है……….।
मैंने मिश्रा जी के व्हाट्स एप्प नम्बर पर एक सुझाव भेजा है कि इस ग्रुप का नाम अम्बेडकरनगर पुलिस-मीडिया सेल कर दिया तो क्या ठीक नहीं रहेगा? देखना यह है कि पुलिस महकमे के आई.टी. विशेषज्ञ क्या उक्त सुझाव पर अमल करेंगे? वैसे मुझे विश्वास तो नहीं फिर भी…………।
लेखिका रीता विश्वकर्मा अंबडेकरनगर की तेजतर्रार पत्रकार हैं। रेनबोन्यूज का संचालन करती हैं। इन्हें बेलौस एवं बिना डरे तीखी कलम चलाने में महारत हासिल है।
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