नई दिल्ली .केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में इलाकाई समाचार पत्रों पर कानूनी अड़चने पैदा कर उन्हें बंदी की कागर पर पहुचाते हुए बड़े समाचार समूहों को दिल खोल कर मदद दिया .इलाकाई समाचारपत्रों के मालिको ने अपने साथ हुए अत्याचार को लेकर केंद्र को लगातार चिट्ठी लिख बिभागीय मंत्रियो से अपील किया किन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली .इधर केंद्र सरकार के साढ़े तीन वर्ष के दौरान इस वर्ष अक्टूबर तक विज्ञापनों पर लगभग 3,755 करोड़ रुपए खर्च कर डाले .
एक आरटीआई के जरिए हासिल जानकारी से यह खुलासा हुआ है. सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने आरटीआई के जवाब में बताया कि इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट मीडिया और बाहरी (आउटडोर) विज्ञापनों पर अप्रैल 2014 से अक्टूबर 2017 तक खर्च की गई राशि लगभग 3,755 करोड़ रुपए है. यह आरटीआई नोएडा के एक आरटीआई कार्यकर्ता रामवीर तंवर ने दाखिल किया था .
सूचना के अनुसार केंद्र सरकार ने सामुदायिक रेडियो, डिजिटल सिनेमा, दूरदर्शन, इंटरनेट, एसएमएस व टीवी समेत इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में विज्ञापन पर करीब 1,656 करोड़ रुपए खर्च किए. प्रिंट मीडिया के लिए, सरकार ने 1,698 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए. आरटीआई से पता चला है कि सरकार ने बाहरी विज्ञापनों, जिसमें होर्डिंग, पोस्टर, बुकलेट्स व कैलेंडर शामिल हैं, पर 399 करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए.
वर्ष 2016 में तंवर द्वारा दाखिल आरटीआई से खुलासा हुआ था कि केंद्र ने एक जून, 2014 से 31 अगस्त, 2016 के बीच ऐसे विज्ञापनों पर 11,00 करोड़ रुपए खर्च किए, जिनमें प्रधानमंत्री मोदी को दिखाया गया था. मंत्रालय ने विज्ञापन खर्च पर जो आंकड़े दिए हैं, उसके अनुसार एक जून, 2014 से 31 मार्च, 2015 के बीच 448 करोड़ रुपए खर्च किए गए वहीं एक अप्रैल 2015 से 31 मार्च, 2016 तक 542 करोड़ रुपए और एक अप्रैल, 2016 से 31 अगस्त, 2016 तक 120 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं.
फिरहाल जा छोटे समाचार पत्रों पर केंद्र सरकार ने कानूनी डंडा चलाया था तो दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना रत पत्रकारों ने खुला आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार छोटे समाचार पत्रों को बंदी के मुहाने पर खड़ा कर बड़े समूहों के मदद की तैयारी कर रही है .
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