You are here

उत्तर-प्रदेश :मजबूरी का महागठबंधन




लखनऊ .उत्तर प्रदेश में विकास की राजनीति की बात कर दोबारा सत्ता में वापसी का सपना संजोए वर्तमान सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को अपनी वर्तमान ताकत का एहसास हो गया है, स्वाभाव से जिद्दी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की जिद्द लोकदल के अध्यक्ष अजीत सिंह के सामने घुटने टेकने को मजबूर हो गई है .उत्तर प्रदेश की सत्ता में पुनः वापसी की छटपटाहट इस कदर हाबी है की पिता मुलायम सिंह यादव के सामने अपनी जिद्द पर अड़े रहने वाले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आज कांग्रेस और रालोद की शर्तो को मानने पर मजबूर हो गए है .समाजवादी पार्टी की स्थिति बिगत कुछ माह से ख़राब हो गई है जिस कारण गठबंधन वक्तीतौर पर अखिलेश की मजबूरी बन गया है,यही वजह है कि अखिलेश बिहार की तर्ज पर कांग्रेस, रालोद और अन्य छोटे दलों से गठबंधन को तैयार हुए हैं.
दरअसल गठबंधन राहुल गाँधी और अखिलेश यादव के लिए मजबूरी ही नहीं वक्ती जरूरत है. जहां एक ओर समाजवादी पार्टी पर अपना कब्जा जमाने वाले अखिलेश के पास 2017 में दोबारा सत्ता में वापसी करने की चुनौती है, वहीं कांग्रेस तीन दशकों से प्रदेश में अपनी जमीन तलाश में है.एक को सत्ता में पुनः वापसी तो दुसरे को जमीन तैयार करना है यही कारण है कि दोनों ही दल अब गठबंधन को तैयार हैं.
इस गठबंधन में शामिल संभावित सभी दल सिगुफा तो भाजपा को प्रदेश की सत्ता से रोकने की बात का फैला रहे है किन्तु सच यह है की शामिल सभी दल अपने अस्तित्व और जमीन को बचाने की फिराक में है.इस गठबंधन का आज औपचारिक एलान होना था किन्तु चौधरी अजीत सिंह द्वरा मागी गई सीटो की संख्या तय न हो पाने के कारण नहीं हो सका.अलबत्ता रालोद के प्रमुख नेतावो ने मीडिया से कहा की गठबंधन में सम्मानजनक स्थिति न मिलने पर रालोद अकेले चुनाव लडेगा.मौके पर चौके से छक्का लगाने वाले अजीत सिंह इस गठबंधन की मजबूरी को भलीभांति समझ रहे है जिस कारण अजीत सिंह 35 सीटो से कम पर न मानने की जिद्द पर अड़े है.फिरहाल गठबंधन की मुहीम गतिमान है देर सबेर अखिलेश रालोद मुखिया को मनाने में कामयाब हो सकते है.


इसे भी पढ़े -