प्राचीन भारतीय दार्शनिको की स्थापनाओं को सामाजिक और राजनीतिक आधार नहीं मिल पाया. उनकी शिक्षाओं को institutionalise नहीं किया जा सका, किसी संस्थागत ढाँचे में (सामाजिक या राजनीतिक) में नहीं बांधा जा सका. कुछ प्रयास हुए भी अशोक या चन्द्रगुप्त के काल में लेकिन वे भी ब्राह्मणी षड्यंत्रों की बलि चढ़ गये. कपिल, कणाद महावीर या बुद्ध से आ रहा…
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भारत के बर्बर और बलि-आहुति-यज्ञवादी प्राचीन कबीलाई धर्म से बौद्ध धर्म में प्रवेश ….?
दुनिया भर का इतिहास देख लीजिये, जब भी व्यापक पैमाने पर सभ्यतागत या नैतिक उत्थान या पतन हुआ है तो वो धर्मों के बदलाव से जुडा हुआ है. इस्लाम पूर्व काल का बर्बर समाज इस्लाम के आने के साथ सामाजिक, नैतिक रूप से एकदम से उंचाई छूने लगता है. उनकी सामाजिक राजनैतिक शक्ति दुनिया का नक्शा बदल डालती है. उनका…
आगे पढ़े ...जल रहा है भारत,बढ़ रही है नफरत….… अनूप पटेल की कविता
नई दिल्ली .भाजपा शासित राजस्थान के राजसमंद में शंभूलाल रेगर नाम के एक दरिन्दे ने जिंदगी के 50 वर्ष पुरे कर चुके के मुस्लिम समाज के बुजुर्ग मोहम्मद अफरजुल की कुल्हाड़ी और तलवार से काट कर निर्मम हत्या करते हुए इस दरिन्दे ने पूरे हत्याकांड का लाइव वीडियो भी जारी किया. इस घटना के बाद धर्म की जकड़न में मानसिक…
आगे पढ़े ...कवि कुमार विश्वास और ब्राह्मणवादी धर्म की असलियत
संबिधान निर्माता डॉ. अंबेडकर पर अशोभनीय टिप्पड़ी क्या कवि कुमार विश्वास किसी भूल चूक में ऐसा वक्तव्य दे रहे हैं? या वे बीजेपी आरएसएस स्टाइल ध्रुवीकरण की राजनीति कर रहे हैं? या क्या वे सच में अपनी नैतिकताबोध और सभ्यताबोध का परिचय दे रहे हैं? पढ़े -सामाजिक चिन्तक संजय जोठे का लेख – नई दिल्ली .हाल ही में कुमार विश्वास…
आगे पढ़े ...वर्तमान मीडिया पर प्रहार करती सूरज कुमार बौद्ध की कबिता, पढ़े -“मजबूर कलम”
मजबूर कलम वाह रे मीडिया, शरीफों की शक्ल में एंकरी गुंडों का जमावड़ा आततायी नजर आते हैं। हमने तुम्हें बेबाक समझा तेरी कलम को बेदाग समझा और तुम हर रोज दलित दलित करके हमारी आवाज को बहिष्कृत करके हमें जलील करना अपनी फितरत बना बैठे हो। हमने समाज पर चिंतन किया तुमने ‘दलित चिंतक’ कहा। फिर ब्राह्मण ठाकुरों के चिंतन…
आगे पढ़े ...ब्राह्मणवादी पाखण्ड के काम करने का ऐतिहासिक तरीका है, जिसका साकार रूप आप ओशो रजनीश
ब्राह्मणवाद और ओशो रजनीश जैसे धूर्त गुरु इसी तरह भारत को हर मोड़ पर पाखंड के दलदल में वापस घसीटते रहते हैं. ये भारत का असली दुर्भाग्य है. आज भारत का समाज जिन समस्याओं से जूझ रहा है वो शुद्धतम ब्राह्मणवाद द्वारा पैदा की गयी समस्याएं हैं. इसे गौर से पहिचान लीजिये और ओशो रजनीश जैसे धूर्तों को बेनकाब…
आगे पढ़े ...पश्चिमी देशों का विज्ञान जब वर्ण, जाति, गोत्र से भरे ‘महान’ भारत में घूमने आया तो क्या हुआ ?
नई दिल्ली .एक दिन पश्चिम का विज्ञान भारत घूमने आया. आते ही उसने भारतीय संस्कृति देवी और भारत के इतिहास बाबू को कुश आसन पर पद्मासन में बैठे गहन धार्मिक (गधा) विमर्श करते हुए देखा. दोनों भाई बहन थे. थोड़ी देर उसने उनकी बातें सुनने की कोशिश की लेकिन संस्कृत भाषा के सूत्रों और मन्त्रों से भरी बातचीत वो समझ…
आगे पढ़े ...मैं विकास बोल रहा हूं, मेरे जनक नरेंद्र मोदी हैं !
लखनऊ .देश की राजनीति में विकास को लेकर उठा पठक जारी है ,देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश से लागयत बिदेशो तक में भारत के विकास की गाथा बताने से नहीं चूकते तो विपक्षी दल केंद्र सरकार के विकास दावों को झूठ का पुलिंदा बता रहे है .विकास के इस मुद्दे पर वाक्गु यूद्ध के बीच बहुजन लेखक सूरज कुमार…
आगे पढ़े ...एकता और अखंडता की प्रतिमूर्ति थे सरदार बल्लभ भाई पटेल
सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. आजाद भारत के वे प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने. बारदोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे सरदार पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहाँ की महिलाओं ने सरदार की उपाधि प्रदान की थी . आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के…
आगे पढ़े ...फेसबुक से उमंग बेदी का जाना अभिव्यक्ति की आजादी की जीत है !
हमारे यहां एक कहावत है कि ‘ढ़ेर अत्याचार ज्यादा दिन नहीं चलता।’ जी हां, यह बात बहुत ही सटीक बैठती है उमंग बेदी पर। हाल में ही Facebook इंडिया के प्रबंध निदेशक उमंग बेदी ने इस्तीफा दे दिया है। इस बात की पुष्टि खुद Facebook इंडिया ने की है। आखिर क्यों हटाया गया उमंगे बेदी को? दरसअल भारत एक लोकतांत्रिक…
आगे पढ़े ...मोदीजी देश की धरोहर हैं, धरो और हर ले जाओ भाई
अक्सर मन करता है कि मोदीजी पर निशाना साधने वाले विरोधियों का थुथुन तोड़ दूं. नरेंद्र भाई मोदीजी केवल प्रधानमंत्री नहीं बल्कि इस देश की धरोहर हैं. और ऐसे धरोहर कि मन करता है इन्हें कहीं धर दो और कोई हर ले जाए. खैर, बेईमान क्या जाने ईमानदारी और नैतिकता क्या होती है? यह केवल मोदीजी से सीखा जा सकता…
आगे पढ़े ...पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन के रुप में दुनिया में धाक जमाने वाले कलाम साहब की जयंती पर भावभीनी श्रद्धांजलि !
ए.पी.जे. अब्दुल कलाम एक ऐसा नाम है जिसका परिचय करवाना मतलब सूर्य को दीपक दिखाने के बराबर है | हर कोई इस नाम से परिचित है , हर कोई इस नाम को अपने आदर्श के रूप में देखता है | अब्दुल कलाम जी का पूरा नाम एनोजी पाकिर जैनुलब्दीन अब्दुल कलाम था | जिनका जन्म 15 अक्टूबर 1931को रामेश्वरम के…
आगे पढ़े ...बुद्ध, बौद्ध धर्म और विपश्यना भारतीय समाज की संजीवनी
बुद्ध से लेकर कृष्णमूर्ति जैसे गंभीर दार्शनिकों और ओशो जैसे मदारी बाबाओं तक में धर्म और मानवीय चेतना के बारे में एक वैज्ञानिक प्रस्तावना उभरती रही है. अलग अलग प्रस्थान बिन्दुओं से यात्रा करते हुए बुद्ध कबीर अंबेडकर कृष्णमूर्ति और ओशो एक जैसी निष्पत्तियों पर आ रहे हैं और गौतम बुद्ध की क्रान्तिद्रिष्टि को समकालीन समाज के अनुकूल बनाते जा…
आगे पढ़े ...15 प्रतिशत अभिजात्य 85 प्रतिशत शूद्रों के शिक्षा, धर्म,राजनीति में रुकावट पैदा करता था
इस देश में एक तबका है जो अपने छोटे से दायरे में एक ही जाति और वर्ण के लोगों की टीम में बैठकर सदियों से निर्णय लेता रहा है। अन्य वर्ण और जातियों की क्या सोच हो सकती है उन्हें पता नहीं, न ही वे पता करने की जरूरत समझते हैं। इसीलिए जिस हुजूम को भारत कहा जाता है वो…
आगे पढ़े ...कबीर, रैदास, फूले, अंबेडकर और पेरियार का संघर्ष असल मे भारत को सभ्य बनाने का ऐतिहासिक और सबसे लंबा संघर्ष है!
कल एक स्विस प्रोफेसर से बात हो रही थी, वे मध्यकालीन यूरोप के सामाजिक ताने बाने की बात बता रहे थे। सामाजिक मानवशास्त्र के विशेषज्ञ के रूप में उनका यूरोप, साउथ एशिया, अफ्रीका और मिडिल ईस्ट का गहरा अध्ययन रहा है। उनकी बातों में जनसामान्य और “नोबेल्स” (श्रेष्ठीजन) की दो श्रेणियों का जिक्र निकला। असल में बात यूँ निकली कि…
आगे पढ़े ...इस लोकतंत्र के समानांतर तानाशाही वाला अन्ना का लोकतंत्र क्या बेहतर रहेगा
क्या यह वाकई सोचने की बात नहीं है कि अन्ना टीम के नाम पर एकत्र हुए सवर्ण वर्चस्व की मानसिकता के लोग समानांतर सरकार ही नहीं, समूची व्यवस्था ही समानांतर रूप से चलाना चाहते हैं। संवैधानिक संसद में इन्हें विश्वास नहीं और लोकपाल के नाम पर सारी शक्तियाँ एक ऐसे केंद्र को सौंपने जा रहे हैं जिसकी जनता के प्रति…
आगे पढ़े ...अब ‘तिलक’ पर भी हमले की जरुरत है- रवीश कुमार
चूंकि ज़माना बदल रहा है इसलिए हो सकता है कि अब दहेज़ न देने के कारण मार दी जाने वाली औरतों की ख़बरों पर भी नज़र जाने की उम्मीद की जा सकती है। 21 अगस्त को दिल्ली के विकासपुरी में 10 लाख दहेज में नहीं लाने के कारण एक महिला को कथित रूप से जला दिया गया। उसे पति और…
आगे पढ़े ...खानाबदोश सरकारी मुलाजिम हूं….पेशे से PCS सामाजिक चिंतक डॉ. राकेश पटेल की कविता
लखनऊ .डॉ. राकेश पटेल उत्तर प्रदेश में पीसीएस अधिकारी हैं. जेएनयू से पीएचडी करने वाले राकेश पटेल बेहद ही सामाजिक,चिंतनशील व्यक्ति व्यक्तित्व के धनी हैं. डॉ. राकेश पटेल अपने अधिकारीपन के घमंड से दूर वंचितों के अधिकारों की की बात करते हैं और बढ़ चढ़कर गरीबों-किसानों के काम भी करते हैं. उनका मानना है कि समाज में अधिकारियों और नेताओं…
आगे पढ़े ...उलटे संबैधानिक हक़ दलितों से शातिराना तरीके से छीन रही भाजपा
आमोद उपाध्याय उत्तरप्रदेश में दलित मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया गया?प्रचण्ड बहुमत वाली बीजेपी के पास अच्छा अवसर था।इसके बावजूद वह एक दलित को राष्ट्रपति बनाने जा रही है और इसका ढिंढोरा भी पीटना शुरू कर दी है।चूँकि शिक्षित समाज जनता है कि भरतीय संविधान ने राष्ट्रपति को कोई भी absolute शक्ति नहीं दी है। अयोध्या काण्ड को पुनः दोहराने की…
आगे पढ़े ...व्यवसायीकरण पत्रकारिता के कारण निरंकुश होती राजसत्ता
पत्रकारिता समाज की दशा को सच्ची दिशा देने का एक मिशन माना जाता है समाज को उच्च आदर्शों के प्रति योगदान और समर्पण के लिए प्रेरित करता है पत्रकारिता को इसीलिए एक पेशा,व्यवसाय कभी नही माना गया..यह एक मिशनरी सेवा है जिसमें बलिदान के प्रतिफल में सिर्फ सम्मान व यश ही मिलता है. बलिदान भी ऐसा जिसमें पत्रकारिता के लिए…
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