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फेसबुक से उमंग बेदी का जाना अभिव्यक्ति की आजादी की जीत है !

हमारे यहां एक कहावत है कि ‘ढ़ेर अत्याचार ज्यादा दिन नहीं चलता।’ जी हां, यह बात बहुत ही सटीक बैठती है उमंग बेदी पर। हाल में ही Facebook इंडिया के प्रबंध निदेशक उमंग बेदी ने इस्तीफा दे दिया है। इस बात की पुष्टि खुद Facebook इंडिया ने की है।

आखिर क्यों हटाया गया उमंगे बेदी को?

दरसअल भारत एक लोकतांत्रिक देश है तथा एक लोकतांत्रिक देश में वहां की आवाम को अपनी बात रखने का पूरा हक होता है। Facebook इस वक्त का सबसे प्रचलित जन संपर्क माध्यम है। लिहाजा Facebook इंडिया के प्रमुख का जिम्मेदारी बढ़ जाती है। जब से उमंग बेदी Facebook इंडिया प्रमुख की जिम्मेदारी पर बैठे हुए थे तब से विपक्ष की आवाज को लगातार दबाया जा रहा है। जैसा कि पूरे देश में सामाजिक न्याय की लड़ाई को जमीनी लड़ाई का माहौल बनता हुआ दिखाई दे रहा है तो जाहिरा तौर पर यह बात कही जा सकती है कि अभिव्यक्ति की आजादी को सुरक्षित तथा संरक्षित करना जरूरी हो जाता है।

Facebook इंडिया तथा अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला..

प्रमुख तौर पर अगर देखा जाए तो नेशनल दस्तक, नेशनल जनमत, द रेसिस्टेंस न्यूज़, ओस टाइम्स, वी लव बाबासाहब, वेलीवाडा, भीम दस्तक, न्यूज़85, न्यूज़ अटैक…. सहित अनेकों न्यूज़ चैनल की Facebook अकाउंट पर हमला किया जा चुका है। वरिष्ठ पत्रकार दिलीप सी मंडल तथा खुद मेरे फेसबुक अकाउंट को अनेकों बार ब्लॉक किया जा चुका है। मैंने अपने Facebook अकाउंट से मध्य प्रदेश में धोबी समाज के बदहाली को उजागर किया तो मेरे फेसबुक अकाउंट को ब्लॉक कर दिया गया। मगर अफसोस की बात यह है कि उमंग बेदी के कार्यकाल में बहुजनों के Facebook अकाउंट तथा शासक वर्ग के खिलाफ बेबाकी से अपनी आवाज को बुलंद करने वाले न्यूज़ चैनलों के फेसबुक पेज पर हमला बढ़ता ही गया। अंततः हम आम आवाम ने भी उमंग बेदी के खिलाफ मोर्चा थाम लिया।

आखिरकार सही की जीत हुई..

लाखों बहुजनों ने तथा प्रगतिशील लेखकों ने फेसबुक इंडिया के इस रवैए की आलोचना की। मैंने भी फेसबुक इंडिया के जातिवादी अधिकारियों के विरोध में कई लेख लिखे, मार्क ज़ुकेरबर्ग जी को अंग्रेजी तथा हिंदी भाषाओं में खुला खत लिखा। मार्क ज़ुकेरबर्ग को लिखित शिकायत में कई मानवतावादी तथा न्याय पसंद लोगों ने इससे पूर्व की एमडी कृतिका रेड्डी को याद किया। यकीनन Facebook इंडिया का प्रबंध निदेशक ऐसे व्यक्ति को बनाना चाहिए बनाया जाना चाहिए जो समतावादी हो तथा अभिव्यक्ति की आजादी का समर्थक हो ना कि वह जो सत्ता पक्ष की दलाली तथा ब्राह्मणवाद को सहेजने समेटने में व्यस्त हो। अंततः हमारी लड़ाई सफल हुई।

– सूरज कुमार बौद्ध
(लेखक भारतीय मूलनिवासी संगठन के राष्ट्रीय महासचिव हैं।)

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