नईदिल्ली .देश कि मीडिया में मनुवादियों कि भूमिका और समाचार माध्यमो में पेड न्यूज़ पर अपनी पुस्तक “मीडिया का अंडवर्ल्ड “के प्रकाशन से मीडिया के कुकर्मो का खुलासा करने के बाद मनुवादियों के निशाने पर रहे मंडल जी ने 3 मई २०१७ को राजद के राजगीर प्रशिक्षण शिविर में मीडिया में दलितों -पिछड़ो कि नगण्य भूमिका का आयना पेश कर मनुवादी मीडिया घरानों और पत्रकारों के आँखों कि किरकरी बन बैठे ,राजगीर में इस सवाल को उठाने के बाद मनुवादी मीडिया में मानो भूचाल सा मच गया हो ,इस देश कि पत्रकारिता मानो अपनी ही जाती के पत्रकार कि विरोधी बन गई हो किन्तु दलितों -पिछड़ो कि आवाज के नायक , वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल इन दिनों सोशल मीडिया पर खासे प्रभावी बन गए है ,फेसबुक पर एक लाख से अधिक फॉलोअर प्रतिदिन दिलीप मंडल के लेखो ,विचारो का बेसब्री से इन्तजार कर रहे है .दिलीप मंडल की गिनती बहुजन समाज के अग्रणी चिंतकों में होती है.
देश भर के बुद्दीजीवी उनकी इस उपलब्धि के लिए फेसबुक समेत अन्य संचार माध्यमों से उन्हें बधाई दे रहे हैं. आपको बता दें कि दिलीप मंडल ने फेसबुक पर अपने लेखन के जरिए देश के 85 फीसदी बहुजन समाज मे अपनी खास जगह बनाई है. आज फेसबुक पर शायद ही ऐसा नाम होगा जो देश में सामाजिक- राजनीतिक बदलाव चाहता हो और दिलीप मंडल के नाम से परिचित न हो.
दिलीप मंडल इलाहाबाद और दिल्ली में सिविल सेवा की तैयारी कर रहे बहुजन समाज के छात्रों के बीच मे खासे लोकप्रिय हैं. हालांकि इस उपलब्धि को हासिल करने के लिए दिलीप मंडल को यथास्थितिवादी और मनुवादी सवर्णों की नाराजगी भी झेलनी पड़ी. उनकी फेसबुक पर आकर गाली-गलौज करने वाले मनुवादियों का आभार मानते हुए दिलीप मंडल कहते हैं कि मनुवादी उनके लिए अमूल्य पूंजी है, ये वो लोग हैं जो उनके लिखने की अहमियत को समझते हैं और अपनी प्रतिक्रिया देते हैं.
उनका मानना है कि देश के विकास के लिए स्वस्थ्य बहस का लोकतांत्रिक माहौल होना बहुत जरूरी है. एक जैसे विचारों की प्रधानता से देश में तालिबानी मानसिकता वाले लोगों के शासन की संभावना बनी रहती है. दिलीप मंडल ने अपने करियर की शुरूआत कॉर्पोरेट मीडिया से ही शुरू की और आप आजतक चैनल की लॉंचिंग टीम का हिस्सा भी रहे. इसके अलावा दिलीप मंडल इंडिया टुडे हिंदी में मैनेजिंग एडिटर भी रहे हैं. दिलील मंडल की सोच है कि देश मे बहुजन समाज के लोगों का अपना मीडिया हो ताकि उन्हें अपनी खबरों के लिए किसी कॉरपोरेट-पॉलीटिक्स के गठजोड़ के चैनल की तरफ आंख लगाकर न देखना पड़े.
प्रमुख पुस्तकें-
- मीडिया का अंडवर्ल्ड
- कॉरपोरेट मीडिया दलाल स्ट्रीट
- जातिवार जनगणना संसद समाज और मीडिया
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