दंगों के मुकदमें वापस लेकर भाजपाई दंगाईयों को बचाना चाहती है योगी सरकार

लखनऊ. रिहाई मंच ने योगी सरकार द्वारा मुज़फ्फरनगर साम्प्रदायिक हिंसा के दोषी भाजपा सांसदों-विधायकों के मुकदमें वापसी पर कड़ी आपत्ती दर्ज की है. योगी सरकार ने अगस्त/सितंबर 2013 में होने वाले भीषण दंगों के मुकदमों को वापस लेने के लिए मुजफ्फरनगर प्रशासन को पत्र लिखा है।न्याय विभाग के विशेष सचिव राज सिंह द्वारा डीएम और एसएसपी मुजफ्फरनगर को लिखे गए इस पत्र में 13 बिंदुओं पर आख्या मांगी गई है जिनमें अंतिम तीन बिंदु मुकदमा वापसी से सम्बंधित हैं।

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने सरकार के इस कदम की कड़े शब्दों में आपत्ती करते हुए कहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार का यह कदम न्यायिक प्रक्रिया को बाधित करने और सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर संविधान व कानून को धता बताने वाला है। उन्होंने कहा कि मुजफ्फरनगर में होने वाले दंगे पूर्व नियोजित थे। भाजपाई नेताओं द्वारा दंगे भड़काने के लिए एक पाकिस्तानी वीडियो को हिंदुओं पर होने वाले अत्याचार के बतौर साजिश के तहत सोशल मीडिया पर अपलोड किया गया था। नंगला मादौड़ में होने वाली महापंचायत में सांसद संजीव बालियान, बिजनौर के सांसद कुंवर भारतेंद्र सिंह, बुढाना विधायक उमेश सिंह, गन्ना मंत्री सुरेश राणा और साध्वी प्राची आदि ने मुसलमानों पर हमले करने के लिए भड़काऊ भाषण दिए थे जिसके बाद व्यापक स्तर पर दंगे भड़क उठे थे।

राजीव यादव ने सवाल किया कि जिन दंगों के संगठित और सुनियोजित होने, आरोपियों की उसमें भूमिका होने की एसआईसी द्वारा जांच किए जाने के बाद चार्जशीट दाखिल की जा चुकी हो उन मुकदमों को वापस लेकर योगी सरकार प्रदेश की जनता को क्या संदेश देना चाहती है? दंगों में सैकड़ों लोग मारे गए, माँ-बेटियों के साथ बलात्कार किया गया और हजारों करोड़ की सम्पत्ति नष्ट कर दी गई। योगी सरकार मुकदमा वापसी के ज़रिए इन पीड़ितों को न्याय से वंचित कर दोषियों को बचाने की फिराक में है।

राजीव ने कहा कि एक तरफ सरकार गुंडों-माफियाओं के खिलाफ अभियान चलाने की बात करती है। प्रदेश भर में दलित, पिछडों और मुसलमानों के फर्जी इनकाउंटर करवाकर खुद अपनी पीठ ठोक रही है। संगठित अपराध को खत्म करने के नाम पर यूपीकोका जैसे गैर लोकतांत्रिक कानून को बनाने की जिद्द पाले हुए है तो दूसरी तरफ मुजफ्फरनगर दंगों जैसे संगठित और सुनियोजित अपराध के आरोपियों को बचाने की फिराक में है। उन्होंने कहा कि दरअसल योगी सरकार संविधान और कानून का सम्मान नहीं करती इसीलिए संघियों-भाजपाइयों द्वारा कारित किए गये अपराधों को क्षम्य मानती है और पीड़ित अलपसंख्यकों, दलितों और आदिवासियों को अपराधी। उन्होंने कहा कि सहारनपुर दलित विरोधी हिंसा के सवर्ण आरोपियों को खुली छूट दी गई जबकि पीड़ित दलितों को जेल में डाल दिया गया है। भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर को गंभीर धाराओं में मुल्जिम बनाकर गिरफ्तार किया गया और रिहाई को बाधित करने के लिए रासुका लगा दिया गया। इसी तरह बलिया में दलितों को गाय चोर की तख्ती लगाकर कालिख पोत पीटते हुए घुमाने वाले अपराधी आजाद हैं और पीड़ित जेल में हैं।

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